बिना शिक्षक के बोर्ड परीक्षा! सिस्टम की लापरवाही ने तोड़ी छात्रों की उम्मीदें” “अटल उत्कृष्ट इंटर कॉलेज त्यूणी: नाम बड़ा, दर्द भी बड़ा!”

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By Pahadi Darpan

पूरे साल खाली ब्लैकबोर्ड ताकते रहे, किताबों के पन्ने खुद ही पलटते रहे, बिना गुरु के सीखने चले थे, पर शब्दों ने ही दगा दे दिया।
परीक्षा आई तो कलम कांप उठी, सपने सवालों में उलझ गए,अब दोष किसे दें—किस्मत को, सिस्टम को या खुद की बेबसी को?

गोविंद शर्मा (पत्रकार) 7807238177

त्यूणी।  शनिवार की सुबह अटल उत्कृष्ट राजकीय इंटर कॉलेज त्यूणी में यह सुबह कु छ अलग थी। परीक्षा केंद्र के बाहर छात्र-छात्राएं हाथ में किताबें और नोट्स लिए खड़े थे। कोई अपने दोस्तों से आखिरी मिनट की तैयारी कर रहा था, तो कोई चुपचाप सोच में डूबा हुआ था। सीबीएसई बोर्ड की अंग्रेजी परीक्षा शुरू होने ही वाली थी। छात्रों के चेहरे पर हल्की घबराहट के बावजूद एक उम्मीद जगी हुई थी  —शायद परीक्षा ठीक हो जाए।                                             लेकिन जब तीन घंटे बाद परीक्षा खत्म हुई और छात्र परीक्षा हॉल से बाहर निकले, तो उनके चेहरे पर आई मायूसी ने सब बयां कर दिया। जहां सुबह तक आत्मविश्वास झलक रहा था, वहीं अब सिर झुके हुए थे। कोई भी खुलकर बोलने को तैयार नहीं था, लेकिन जब बात छेड़ी गई तो लगभग हर छात्र ने एक ही बात कही— “पेपर अच्छा नहीं गया।” यह पहली बार नहीं था जब इस स्कूल के छात्रों को इस तरह की स्थिति का सामना करना पड़ा। पिछले साल भी अंग्रेजी के शिक्षक न होने के कारण 37 छात्र-छात्राओं का परिणाम खराब हुआ था। इनमें से कुछ ने तो पढ़ाई ही छोड़ दी, और जो बचे, वे जैसे-तैसे दोबारा एडमिशन लेकर आगे बढ़े। लेकिन इस बार हालात और भी खराब हो चुके हैं।

   शिक्षकों की कमी बनी बड़ी समस्या : इस निराशा का सबसे बड़ा कारण पूरे साल LTअंग्रेजी विषय के दोनों शिक्षकों के पद रिक्त रहना रहा। यह स्थिति तब और भी गंभीर हो गई जब पूरे साल अंग्रेजी पढ़ाने के लिए स्कूल में कोई स्थायी शिक्षक उपलब्ध नहीं था। मजबूरन प्रशासन ने इंटरमीडिएट के राजनीतिक विज्ञान के अतिथि शिक्षक को कक्षा 6 से 8 तक अंग्रेजी पढ़ाने की जिम्मेदारी दे दी, जबकि 9वीं और 10वीं कक्षा के लिए अलग-अलग विषयों के शिक्षकों को यह कार्य सौंपा गया। पिछले वर्ष भी इसी समस्या के कारण इंटरमीडिएट परीक्षा में इस स्कूल के 37 छात्र-छात्राओं का परिणाम खराब रहा था। कई छात्रों को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी, जबकि कुछ ने जैसे-तैसे दोबारा एडमिशन लिया। इस बार भी हालात वैसे ही बने हुए हैं, जिससे छात्रों और अभिभावकों की चिंता बढ़ गई है।

शिक्षा विभाग पर लापरवाही के आरोप : अभिभावकों और छात्र संगठनों ने कई बार शिक्षा विभाग और प्रशासन से अंग्रेजी शिक्षकों की नियुक्ति की मांग की, लेकिन पूरे साल यह मुद्दा नजरअंदाज कर दिया गया। अब परीक्षा हो चुकी है, लेकिन शिक्षकों की कमी जस की तस बनी हुई है।  स्थानीय लोगों का कहना है कि शिक्षा विभाग जानबूझकर इस समस्या की अनदेखी कर रहा है। छात्रों का भविष्य दांव पर लगा है, लेकिन अधिकारियों को कोई चिंता नहीं। अभिभावकों ने आरोप लगाया कि ‘अटल उत्कृष्ट’ का नाम तो दे दिया गया, लेकिन न तो शिक्षकों की व्यवस्था की गई और न ही पढ़ाई के स्तर में कोई सुधार हुआ।

छात्र संगठन दे सकते हैं आंदोलन की चेतावनी : छात्र संगठनों का कहना है कि इस मुद्दे को लेकर कई बार ज्ञापन सौंपे गए, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन मिला। यदि जल्द ही शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की गई, तो बड़े आंदोलन की तैयारी की जाएगी, जिसकी जिम्मेदारी शासन और प्रशासन की होगी। 

अटल उत्कृष्ट कॉलेज का नाम, लेकिन सुविधाओं का अभाव
करीब पाँच साल पहले जब इस इंटर कॉलेज को अटल उत्कृष्ट का दर्जा दिया गया था, तो क्षेत्रवासियों में खुशी का माहौल था। लेकिन आज वही लोग इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि स्कूल को अटल उत्कृष्ट का नाम तो मिला, लेकिन आज तक न तो विषयों की स्वीकृति मिली और न ही शिक्षकों की पूरी नियुक्ति हो पाई। विद्यालय प्रशासन ने इस बार सख्ती के साथ सीसीटीवी कैमरों की निगरानी में परीक्षा आयोजित करवाई, लेकिन मूलभूत समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं।

इस मामले में मुख्य शिक्षा अधिकारी विनोद कुमार डोढ़ियाल ने कहा कि  “त्यूणी अटल उत्कृष्ट विद्यालय है, यहां शिक्षकों की नियुक्ति परीक्षा के जरिए होती है, ट्रांसफर से नहीं। जैसे ही निदेशालय से निर्देश मिलेंगे, शिक्षकों को नियुक्त कर दिया जाएगा।” जबकि शिक्षा महानिदेशक झरना कमठान ने कहा, “इस बार 1500 अध्यापक परीक्षा पास कर चुके हैं। जल्द ही इन्हें सभी स्कूलों के रिक्त पदों पर तैनात किया जाएगा।”

लेकिन तब तक क्या होगा?  अब सवाल यह उठता है कि जब तक यहां शिक्षक तैनात होंगे, तब तक यहां के छात्रों का क्या होगा? क्या अगली पीढ़ी को भी बिना अंग्रेजी शिक्षक के ही पढ़ाई करनी पड़ेगी ? अब देखना यह होगा कि शिक्षा विभाग सिर्फ बयानबाजी करेगा या फिर वाकई में कुछ ठोस कदम उठाए जाएंगे। लेकिन एक बात तय है—अगर जल्द ही समाधान नहीं निकला, तो छात्र और अभिभावक अब चुप नहीं बैठने वाले।

क्या यह उचित है कि ‘अटल उत्कृष्ट’ जैसी बड़ी उपाधि सिर्फ कागजों में हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत बिल्कुल उलट हो? शिक्षा सिर्फ किताबों का ज्ञान नहीं होती, यह बच्चों के भविष्य को आकार देने का जरिया होती है। लेकिन जब सिस्टम ही इस तरह की लापरवाही दिखाएगा, तो यह उड़ान अधूरी रह जाएगी।